Black Grapes ki kheti :अच्छी गुणवंता वाले काले अंगूर की खेती इस तरह करें कि होगी अधिक पैदावार ।

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Black Grapes ki kheti

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Black Grapes ki kheti : अच्छी गुणवंता वाले काले अंगूर की खेती इस तरह करें कि होगी अधिक पैदावार ।काले अंगूर की खेती इस तरह करें जिसमें मिलेगा मुनाफा ही मुनाफाकाले अंगूूर खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। इसके स्वाद और गुणों को देखते हुए इसकी मांग बाजार में अच्छी खासी होती है.

काले अंगूर को जूस और जेली बनाने के लिए किया जाता है। इसके कारण काले अंगूर की मांग मंडी में काफी ज्यादा होती है। बड़े-बड़े मोल्स में जहां सब्जी व फल विक्रय होते है वहां काले अंगूर का रेट साधारण हरे अंगूरों से ज्यादा होता है। खुदरा रेट के साथ ही इसका थोक रेट भी अधिक है। यही कारण है कि काले अंगूर का उत्पादन हरे रंग के अंगूरों से अधिक फायदा देने वाला साबित हो रहा है।इसका रसीलापन और स्वाद लोगो को काफी भांता है | अंगूर का फल खाने में अधिक स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही इसके कई स्वास्थ फायदे भी है

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मिट्टी ;

अंगूर की जड़ की संरचना काफी मजबूत होती है। अत: यह कंकरीली, रेतीली से चिकनी तथा उथली से लेकर गहरी मिट्टियों में सफलतापूर्वक पनपता है.

जलवायु ;

इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल रहती है।जलवायु का फल के विकास तथा पके हुए अंगूर की बनावट और गुणों पर काफी असर पड़ता है। अंगूर के पकते समय बारिश या आसमान में बादल का होना बहुत ही हानिकारक है, इससे फल फट जाते हैं और फलों की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

उन्नत किस्में ;

अरका कृष्णा,बंगलौर ब्लू,अरका राजसी,गुलाबी,अरका नील मणि.

Black Grapes ki kheti

Black Grapes ki kheti :अच्छी गुणवंता वाले काले अंगूर की खेती इस तरह करें कि होगी अधिक पैदावार ।

कलम के द्वारा रोपण ;

जनवरी माह में काट छांट से निकली टहनियों से कलमेें ली जाती हैं। कलमें सदैव स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों से लिए जाने चाहिए। सामान्यत: 4 – 6 गांठों वाली 23 – 45 से.मी. लम्बी कलमें ली जाती हैं। कलम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कलम का नीचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए एवं ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए। इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार की गई तथा सतह से ऊंची क्यारियों में लगा देते हैं।

रोपाई ;

बेलों की रोपाई से पूर्व मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें। बेल की बीच की दूरी किस्म विशेष एवं साधने की पद्धति पर निर्भर करती है। इन सभी चीजों को ध्यान में रख कर 90 & 90 से.मी. आकर के गड्डे खोदने के बाद उन्हें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशीयम सल्फेट आदि को अच्छी तरह मिलाकर भर दें। जनवरी माह में इन गड्डों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को लगा दें.

समय ;

रोपाई दिसंबर से जनवरी महीने में की जाती है.

खाद ;

बेलों में, यूरिया 60 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 125 ग्राम अप्रैल मई के महीने में डालें और जून के महीने में यही मात्रा दोबारा डालें। पुरानी बेलों के लिए, टेबल में दी गई मात्रा के अनुसार खादें डालें। रूड़ी की खाद और एस एस पी की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा छंटाई करने के बाद डालें और नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा फल बनने के बाद अप्रैल महीने में डालें। यूरिया की दो बार स्प्रे करें.

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सिंचाई ;

अंगूर के खेतों की सिंचाई की बात आने पर उत्पादक ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करते हैं। रोपाई के लिए तैयार होने पर, वे जमीन में छोटे गड्ढे बनाते हैं, जहाँ वो पौधे लगाते हैं। ज्यादातर मामलों में उर्वरीकरण, ड्रिप सिंचाई और जंगली घास पर नियंत्रण की प्रक्रिया लागू होती है

मुनाफा ;

दावा है कि वे प्रति हेक्टेयर 6 टन से ज्यादा अंगूर की फसल नहीं पाना चाहते हैं, क्योंकि ज्यादा उपज से उत्पाद की गुणवत्ता में बहुत ज्यादा कमी आ जाएगी। हालाँकि, यह उपज अन्य किस्मों की तुलना में बहुत ज्यादा कम लग सकती है, लेकिन यह उत्पादक का आर्थिक रूप से समर्थन करने के लिए काफी पर्याप्त है, क्योंकि उत्पाद को प्रीमियम मूल्य पर बेचा जा सकता है। दूसरी ओर, मध्यम और निम्न-गुणवत्ता वाली वाइन बनाने वाली अंगूर की किस्में प्रति हेक्टेयर 20-40 टन या इससे भी अधिक पैदावार दे सकती हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा मूल्य पर बेचा नहीं जा सकता है।एक बार उगाएं, दस से बीस साल तक देगा मुनाफा

Description आज की इस पोस्ट में हम काले अंगूर की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह न्यूज़ हमने सोशल मीडिया के माध्यम से एकत्रित की अगर इसमें कोई त्रुटि हो तो उसके लिए हमारी वेबसाइट राजस्थान ब्रेकिंग न्यूज़ जिम्मेदार नहीं होगी को हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद हो तो अधिक से अधिक शेयर करें

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